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Chapter 2

chapter 2

Inspirational Stories।

                       आज मोनिका के मन - मस्तिष्क में विचारों की तूफान बड़ी ही तिब्र हो चली थी और चले भी क्यों ना, आज मोनिका ने अपने जीवन का इतना बड़ा फैसला जो लिया था। आज वो हमेशा हमेशा के लिए अपना घर पीछे जो छोड़ आयी थी।                 मोनिका तूफान के इस बवंडर में अभी गोते ही लगा रही थी कि ऐसा लगा जैसे मानों किसी ने उसके कानों में बम फोड़ दिया हो। ये बम की आवाज कुछ और नहीं बल्कि उस गांव से मोतिहारी जाने वाली आख़िरी बस की थी।         अपने ख्यालों से बाहर जब मोनिका ने देखा तो उसके सामने भीड़ से खचाखच भरी एक बस खड़ी थी। वह उस बस में चढ़ना तो नहीं चाहती थी लेकिन उसके पास कोई दुसरा चारा भी नहीं था। उसने कुछ देर तो सोचा पर समय न बर्बाद करते हुए बस में चढ़ गई।    चूंकि वह एक महिला थी इसलिए उसे सीट मिलने में कोई दिक्कत भी नहीं हुई। उसने अपना टिकट लिया और सीट पे बैठ गई। सीट खिड़की वाली थी। अतः वह बस के बाहर कुछ देर तो प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेती रही लेकिन शाम होने की वजह से उसे यह सुख भी प्राप्त न हो सका। कुछ देर बाद वो फिर अपने ख्यालों में गोते लगाने लगी।       आज मैं अपना घर छोड़ आयी लेकिन क्या करती। रमेश को भी तो मुझसे इस तरह का व्यवहार नहीं करना चाहिए था। आखिर मेरी भी तो कोई इज्जत है, आत्मसम्मान है।           आज आंसुओं ने तो जैसे बगावत ही कर डाली थी। रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। ऐसे लग रहा था जैसे आज आंसुओं की शैलाब में पूरा बस, शहर और गांव सब डूब जाएगा।      झगड़े की वजह क्या थी? सिर्फ और सिर्फ एक प्याली चाय। बड़ी ही अजीब बात है। बस इतनी सी बात के लिए रमेश ने मुझे बोला मेरे घर से निकल जाओ। कोई बात नहीं मैं भी कभी नहीं जाऊंगी। अब चाहे वो मेरे पाव ही क्यों ना पकड़ ले। मैं नहीं जाऊंगी।         मोनिका का मन भी बड़ा ही अजीब था, जब तूफानों का बवंडर शान्त होता तो समुद्र की लहरों की तरह उसके मन में ज्वार भाटें उठने लगते।       अगर रमेश जल्दी उठ गया था और ऑफिस आज उसे जल्दी ही जाना था तो चाय खुद ही बना लेता या फिर उसने मुझे रात में ही क्यों नहीं बोला कि उसे आज ऑफिस जल्दी जाना है तो ना मैं इसे मजाक में लेती और ना ही इतना बड़ा झगड़ा होता। बात फिर भी झगड़े तक होती तब भी ठीक था, उसने मुझे थप्पड़ क्यों मारा।          मोनिका के मन का ज्वार भाटा अभी समाप्त भी न हुआ था कि कंटेक्टर ने आवाज लगाई - मोतिहारी - मोतिहारी। मोनिका की मंजिल अब आ चुकी थी। उसकी मां का घर ठीक उसके सामने दिख रहा था।            अरे मोनिका क्या बात ऐसे अचानक? दामाद जी कहां हैं? सब ठीक तो है ना?      मोनिका रोते हुए - हां मां सब ठीक है पर मैं अब तुम्हारे पास हमेशा के लिए आ गई हूं और कहे देती हूं मैं रमेश के पास अब कभी नहीं जाऊंगी।   पर बेटी ये तो बता हुआ क्या? मां सिर्फ एक प्याली चाय के लिए मुझे बोला घर से निकल जाओ। भला ऐसे इंसान के साथ मां कोई कैसे रह सकता है।          अरे बेटी ये तो पति पत्नी के बीच लड़ाइयां तो चलती रहती हैं तो इसके लिए कोई अपना घर थोड़े ही छोड़ देता है। जैसे तुम गुस्से में घर छोड़ आयी। वैसे ही रमेश ने तुम्हे गुस्से में बोल दिया होगा कि तुम घर से निकल जाओ।      पर मां रमेश ने मुझे थप्पड़ भी मारा था। बेटी अभी तुम शांत हो जाओ। हाथ मुंह धो लो। फिर आराम से खा पी कर इसपे विचार करना।   ठीक है मां। वैसे मुझे बड़ी भूख भी लगी है।      मोनिका खाने के बाद बिस्तर पे सोने तो आ गई, पर नींद तो उससे कोसो दूर थी। मोनिका विचारों की दुनियां में फिर खो गई।         शायद मां सही कह रही थी। रमेश ने मुझे गुस्से में ही कहा होगा। रमेश तो मुझसे कितना प्यार करता है। आज तक उसने मेरी हर बात मानी है। मेरी हर एक ख्वाहिशों को पुरा भी किया है।             वैसे गलती मेरी भी है, अगर रमेश ने एक कप चाय बनाने के लिए मुझे बोल ही दिया था तो क्या हो जाता अगर मैं आलस छोड़ उसके लिए उठ ही जाती। अगर उसने मुझे जिद्द करके उठा भी दिया था तो मुझे उसे ये नहीं कहना चाहिए था कि अगर सुबह सुबह चाय का इतना ही शौक है तो गांव से अपनी मां को बुला लो। मैं तुम्हारी बीबी हूं, कोई नौकरानी नहीं। शायद इसलिए ही रमेश को गुस्सा आया होगा और उसने मुझे थपड़ मार दी। नहीं नहीं मां सही कह रही थी कि रमेश ने गुस्से में ही मुझे थपड़ मारा था।         हाय मेरे से कितनी बड़ी गलती हो गई। मैंने तो रमेश को ये भी नहीं बताया की आज मैं कहां जा रही हूं। बेचारा मुझे पागलों की तरह ढूंढ़ रहा होगा। इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, मैं कल सुबह ही पहली बस से रमेश के पास वापस लौट जाऊंगी और उससे माफी भी मागुंगी।         अब जैसे मोनिका के मन में समुद्री लहरों का तूफान एक दम शांत हो चुका था। उसने अब जाके चैन की सांस ली थी।            वो अब गहरी नींद के आगोश में जा चुकी थी, लेकिन रमेश से मिलने का संकल्प उसका दृढ़ था।             नीरज की कलम से...

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